बेला कस्ताे शिशिर पछिकाे उग्रवादी वसन्त
गर्मी उस्तै असल मनमा व्यग्रता मन्द मन्द ।
बाक्लाे छाला सहित कपडा एकसाथै उतारूँ
दाैडी जाउँ गहन जलकाे तालमा फाल हानूँ ।।
जिस्की जिस्की अतुल प्रियकाे याद अायाे सतायाे
बिर्सी सक्थेँ कतिपय पला प्यार थाेरै जतायाे ।
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